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Top 10 Moral Stories In Hindi - नैतिक कहानियां जो आपके बच्चो को बहुत कुछ सिखाती है

बच्चे हर पल नई-नई चीजें सीखने के लिए उत्सुक रहते हैं। यही नई चीजें अगर उन्हें मजेदार तरीके से सिखाई जाएं, तो वो और भी आसानी से इन्हें सीख सकते हैं। इस काम में कहानियां उनकी मदद कर सकती हैं। कहानियां बच्चों के लिए एक मजेदार और शिक्षाप्रद तरीका हैं। ये कहानियां बच्चों को नैतिक शिक्षा देती हैं, उनकी कल्पनाशीलता को बढ़ावा देती हैं और उन्हें जीवन के विभिन्न अनुभवों से परिचित कराती हैं। शिक्षाप्रद कहानियां बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। 

नमस्कार मै हूँ अभिषेक अग्रवाल और मै आज आपके लिए Top 10 Moral Stories In Hindi और short top 10 moral stories in hindi लेकर आया हूँ आशा करता हूँ यह कहानियां आपको बहुत पसंद आने वाली है आप यह लेख हमारी वेबसाइट www.infohere.in पर पढ़ रहे है चलिए शरू करते है ..

Top 10 Moral Stories In Hindi

कहानियों के फायदे :

  • कल्पनाशीलता को बढ़ावा देती हैं:  कहानियां बच्चों की कल्पनाओं की दुनिया को खूबसूरत बनाने में मदद करती हैं।
  • नैतिक शिक्षा देती हैं:  कहानियों के माध्यम से बच्चों को अच्छे-बुरे, सही-गलत आदि के बारे में बताया जा सकता है।
  • मनोरंजन का साधन हैं:  कहानियां बच्चों को मनोरंजन का भी अच्छा साधन प्रदान करती हैं।
  • जीवन के अनुभव सिखाती हैं:  कहानियों के माध्यम से बच्चों को जीवन के विभिन्न अनुभवों के बारे में बताया जा सकता है।

 Top 10 moral stories in Hindi 

1. ईमानदार लकडहारा की कहानी 

एक समय की बात है, एक लकड़हारा जंगल में लकड़ी काटने जा रहा था | एक नदी के किनारे उसने एक पेड को देखा तो उस पर चढ़ कर लकड़ी काटने लगा | पेड़ को काटते हुए उसकी कुल्हाड़ी हाथ से फिसल कर नदी में गिर गयी । वह बेहद दुखी हो गया था , तभी अचानक उसके सामने एक दयालु जल परी आई और वह एक सोने की कुल्हाड़ी हाथ में ली हुई थी | 
Top 10 Moral Stories In Hindi
उसकी ईमानदारी का परी ने परीक्षण करने के लिए पूछा कि क्या यह उसकी कुल्हाड़ी है? लकड़हारा ने स्वीकार किया कि यह उसकी नहीं है। इसके बाद वो नदी में चली गयी और दोबारा उसके सामने चाँदी की कुल्हाड़ी दिखा कर पूछने लगी की क्या यह उसकी है इस बार भी उसने न में जवाब दिया उसकी बात जल परी को सुनकर आश्चर्य हुआ और अब वह जल परी फिर से नदी मे चली गयी और इस बार लकड़ी की कुल्हाड़ी दिखाया तो उस लकड़हारे ने यह स्वीकार किया कि यही उसकी कुल्हाड़ी है | लकड़हारे की इस बात से वह जल परी मुस्कुराई और फिर जलपरी ने उस लकड़हारे की ईमानदारी को देखकर उसे सभी तीन कुल्हाड़ दे दी | 

कहानी से सीख : 

कहानी हमें यह सिखाती है कि हमें ईमानदारी हमेशा पुरस्कृत होती है। 


 2. चींटी और टिड्डा की कहानी

एक बार की बात है। गर्मी का मौसम में एक चींटी कड़ी मेहनत से अपने लिए अनाज जुटा रही थी। चींटी कई दिनों से इस काम में जुटी थी। वह रोजाना खेत से दाने उठाकर अपने बिल में जमा करती थी। वहीं, पास में ही एक टिड्डा फुदक रहा था। पसीने से तरबतर चींटी अनाज ढोते-ढोते थक चुकी थी। पीठ पर अनाज लेकर बिल की तरफ जा रही थी, तभी टिड्डा फुदककर उसके सामने आ गया। बोला, प्यारी चींटी… क्यों इतनी मेहनत कर रही हो। आओ मजे करें। चींटी ने टिड्डे को नजरअंदाज किया और खेत से उठाकर एक-एक दाना अपने बिल में जमा करती रही। जबकि टिड्डा उसका उपहास करता था और समय का आनंद लेता था। टिड्डा की हरकतों से चींटी परेशान हो गई। 

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उसने समझाते हुए कहा, सुनो टिड्डा- ठंड का मौसम कुछ दिन बाद ही आने वाला है। तब खूब बर्फ गिरेगी। कहीं भी अनाज नहीं मिलेगा। मेरी सलाह है, अपने खाने का इंतजाम कर लो।धीरे-धीरे गर्मी का मौसम खत्म हो गया। मस्ती में डूबे टिड्डे को पता ही नहीं चला कि गर्मी कब खत्म हो गई। टिड्डे ने अपने खाने के लिए बिल्कुल भी अनाज नहीं जुटाया था। हर ओर बर्फ की मोटी चादर पड़ी थी। भूख से टिड्डा तड़पने लगा और ठंड से बचने का भी इंतजाम नहीं था। तभी उसकी नजर चींटी पर पड़ी। अपनी बिल में चींटी मजे से जमा किए हुए अनाज खा रही थी। तब टिड्डे को एहसास हुआ कि समय को बर्बाद करने का उसे फल मिल चुका है। भूख और ठंड से तड़पते टिड्डे की फिर चींटी ने मदद की।

कहानी से सीख : 

कहानी हमें यह सिखाती है कि अपने काम को मेहनत और लगन के साथ करना चाहिए और भविष्य के लिए योजना बनाने का महत्व है। उस वक्त भले ही लोग मजाक उड़ाएं, परन्तु बाद में वे ही तारीफ करेंगे। 

3. बच्चा जो कहता था भेड़िया आया 

बहुत समय पहले एक गाँव में एक चरवाहा लड़का रहता था। उसके पास कई भेड़ थीं, जिनको चराने के लिए वह पास के ही  जंगल में जाया करता था। हर रोज सुबह वह भेड़ों को जंगल ले जाता और शाम तक वापस घर लौट आता था । पूरा दिन भेड़ घास चरतीं और चरवाहा बैठा-बैठा ऊबता रहता था । इस कारण वह हर रोज खुद का मनोरंजन करने के नए-नए तरीके ढूँढ़ता था। एक दिन उसे एक नई शरारत सूझी। चरवाहे ने सोचा, क्यों न इस बार मनोरंजन गाँव वालों के साथ किया जाए। यही सोच कर उसने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया “बचाओ-बचाओ भेड़िया आया, भेड़िया आया।” उसकी आवाज़ सुन कर सभी गाँव वाले लाठी और डंडे लेकर दौड़ते हुए उसकी मदद करने पहुंचे उन्होंने पाया कि वहाँ कोई भेड़िया नहीं है और चरवाहा पेट पकड़ कर हँसे जा रहा था। 

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“हाहाहा, बड़ा मज़ा आया, बुद्दू बनाया | मैं तो मज़ाक कर रहा था। कैसे दौड़ते-दौड़ते आए हो सब, हाहाहा।” उसकी ये बातें सुन कर गाँव वालों का बहुत गुस्सा आ रहा था। एक आदमी ने कहा कि हम सब अपना काम छोड़ कर, तुम्हें बचाने आए हैं और तुम हँस रहे हो ? इसके बाद सभी लोग वापस अपने अपने काम पर लौट गए। कुछ दिनों के बाद, गाँव वालों ने फिर से चरवाहे की चिल्लाने की आवाज़ सुनी। “बचाओ बचाओ भेड़िया आया, बचाओ।” यह सुनते ही, वो फिर से चरवाहे की मदद करने के लिए दौड़ पड़े। जैसे ही गाँव वालें वहाँ पहुंचे, तो वो देखते हैं कि चरवाहा अपनी भेड़ों के साथ आराम से खड़ा है और गाँव वालों की तरफ़ देख कर ज़ोर-ज़ोर से हँस रहा है  "बुद्दू बनाया, बुद्दू बनाया "। इस बार गाँव वालों को और गुस्सा आया। 

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उन सभी ने चरवाहे को खूब खरी-खोटी सुनाई, लेकिन चरवाहे को अक्ल न आई। उसने फिर दो-तीन बार ऐसा ही किया और मज़ाक में चिल्लाते हुए गाँव वालों को इकठ्ठा कर लिया। अब गाँव वालों ने चरवाहे की बात पर भरोसा करना बंद कर दिया था। एक दिन गाँव वालें अपने खेतों पर काम कर रहे थे और उन्हें फिर से चरवाहे के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। “बचाओ बचाओ भेड़िया आया, भेड़िया आया बचाओ”, लेकिन इस बार किसी ने भी उसकी बात पर गौर नहीं किया। सभी आपस में कहने लगे कि इसका तो काम ही है दिन भर यूँ मज़ाक करना। चरवाहा लगातार चिल्ला रहा था, “अरे कोई तो आओ, मेरी मदद करो, इस भेड़िए को भगाओ”, लेकिन इस बार कोई भी उसकी मदद करने वहाँ नहीं पहुंचा। चरवाहा चिल्लाता रहा, लेकिन गाँव वालें नहीं आए और भेड़िया एक-एक करके उसकी सारी भेड़ों को खा गया। यह सब देख चरवाहा रोने लगा। 

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जब बहुत रात तक चरवाहा घर नहीं आया, तो गाँव वालें उसे ढूँढते हुए जंगल पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि चरवाहा पेड़ पर बैठा खूब रो रहा था। गाँव वालों ने किसी तरह चरवाहे को पेड़ से उतारा। उस दिन चरवाहे की जान तो बच गई, लेकिन उसकी प्यारी भेड़ें भेड़िए का शिकार बन चुकी थीं। चरवाहे को अपनी गलती का एहसास हो गया था और उसने गाँव वालों से माँफ़ी माँगी। चरवाहा बोला “मुझे मॉफ कर दो भाइयों, मैंने झूठ बोल कर बहुत बड़ी गलती कर दी। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।”   

कहानी से सीख : 

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलना बहुत बुरी बात होती है। झूठ बोलने की वजह से हम लोगों का विश्वास खोने लगते हैं और समय आने पर कोई हमारी मदद नहीं करता। इस कहानी ने हमें ईमानदारी का महत्व और झूठी बात न करने को ध्यान में रखने की महत्वपूर्णता सिखाई है।       

    

4. कछुआ और खरगोश की कहानी 

एक बार की बात है कि एक जंगल में एक खरगोश रहता था जो कि बहुत तेज दौड़ता था और उसे अपने तेज दौड़ने पर बहुत घमंड था। वह पूरे जंगल में घूमता था और उसे जंगल में जो दिखता, वो उसी को अपने साथ दौड़ लगाने की चुनौती दे देता था । वो हमेशा खुद की तारीफ दूसरे जानवरों के बीच करता और कई बार दूसरों का मजाक भी उड़ाता था । एक बार उसे एक कछुआ दिखाई पड़ा, उसकी सुस्त चाल को देखते हुए खरगोश ने कछुए को भी दौड़ लगाने की चुनौती दे दी। कछुए काफी समझदार था तो उसने खरगोश की चुनौती स्वीकार कर ली और दौड़ लगाने के लिए तैयार हो गया।

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जंगल के सभी जानवर कछुए और खरगोश की दौड़ देखने के लिए रोमांचित थे और सभी एक जगह जमा हो गए। दौड़ शुरू हो गई और खरगोश तेजी से दौड़ने लगा और कछुआ अपनी धीमी चाल से आगे बढ़ने लगा। थोड़ी दूर पहुंचने के बाद खरगोश ने पीछे मुड़कर देखा, तो उसे कछुआ कहीं नहीं दिखाई दिया । खरगोश ने सोचा, कछुआ तो बहुत धीरे-धीरे चल रहा है और उसे यहां तक पहुंचने में काफी वक्त लग जाएगा, क्यों न थोड़ी देर आराम ही कर लिया जाए। यह सोचते हुए खरगोश एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा। पेड़ के नीचे सुस्ताते-सुस्ताते कब उसकी आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला। उधर, कछुआ धीरे-धीरे और बिना रुके लक्ष्य तक पहुंच गया। उसकी जीत देखकर बाकी जानवरों ने तालियां बजानी शुरू कर दी। तालियों की आवाज सुनकर खरगोश की नींद खुल गई और वो दौड़कर जीत की रेखा तक पहुंचा, लेकिन कछुआ तो पहले ही जीत चुका और खरगोश पछताता रह गया।

कहानी से सीख :

इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि जो धैर्य और मेहनत से काम करता है, उसकी जीत पक्की होती है और जिन्हें खुद पर या अपने किए हुए कार्य पर घमंड होता है, उसका घमंड कभी न कभी टूटता जरूर है।  या ये कहें कि नियमित प्रयास और संघर्ष, अत्यधिक आत्मविश्वास से बेहतर परिणाम देते हैं।

 

5. बैल और मेंढ़क की कहानी 

एक समय की बात है। किसी घने वन में एक तालाब था, इस तालाब में ढेर सारे मेंढक रहा करते थे। उन्हीं में एक मेंढक अपने तीन बच्चों के साथ रहता था। वो सभी तालाब में ही रहते और खाते-पीते थे। उस मेंढक की सेहत अच्छी-खासी हो चुकी थी और वो उस तालाब में सबसे बड़ा मेंढक बन चुका था। उसके बच्चे उसे देखकर काफी खुश हुआ करते थे। उसके बच्चों को लगता था कि उनके पिता ही दुनिया में सबसे बड़े और बलवान हैं। मेंढक भी अपने बच्चों को अपने बारे में झूठी कहानियां सुनाया करता था और उनके सामने शक्तिशाली होने का दिखावा करता था। 

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उस मेंढक को अपने शारीरिक कद-काठी पर बहुत घमंड था। ऐसे ही दिन बीतते गए। एक दिन मेंढक के बच्चे खेलते-खेलते तालाब से बाहर को चले गए। वो पास के एक गांव पहुंचे। वहां उन्होंने एक बैल को देखा और उसे देखते ही उनकी आंखें खुली की खुली रह गईं। उन्होंने कभी इतना बड़ा जीव नहीं देखा था। वो बैल को देखकर डर गए। वो बैल को देखे जा रहे थे और बैल मजे से घास खा रहा था। घास खाते-खाते बैल ने जोर से हुंकार लगाई। बस फिर क्या था, मेंढक के तीनों बच्चे डर के मारे भागकर तालाब में अपने पिता के पास आ पहुंचे। पिता ने उनके डर का जब कारण पूछा। उन तीनों ने पिता को बताया कि उन्होंने उनसे भी विशाल और ताकतवर जीव को देखा है। 

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उन्हें लगता है वो दुनिया का सबसे बड़ा और शक्तिशाली जीव है। यह सुनते ही मेंढक के अहंकार को ठेस पहुंची। उसने एक लंबी सांस भरकर खुद को फुला लिया और कहा ‘क्या वो उससे भी बड़ा जीव था?’ उसके बच्चों ने कहा, ‘हां, वो तो आप से भी बड़ा जीव था।’ मेंढक को गुस्सा आ गया, उसने और ज्यादा सांस भरकर खुद को फुलाया और पूछा, ‘क्या अब भी वो जीव बड़ा था?’ बच्चों ने कहा, ‘ ये तो कुछ भी नहीं, वो आपसे कई गुना बड़ा था।’ मेंढक से यह सुना नहीं गया, वह सांस फुला-फुलाकर खुद को गुब्बारे की तरह फुलाता चला गया। फिर एक वक्त आया जब उसका शरीर पूरी तरह फूल गया और वो फट गया और वो मेढक अहंकार के चक्कर में अपनी जान से हाथ धो बैठा।

कहानी से सीख : 

कभी भी किसी भी बात का घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड करने से खुद का ही नुकसान होता है।

 

6. लोमड़ी और अंगूर की कहानी 
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एक बार एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह खाने की तलाश में इधर-उधर भटकने लगी। काफी समय के बाद भी उसे खाने को कुछ भी न मिला, तभी उसकी नजर पास के एक बाग पर पड़ी। बाग बहुत ही सुन्दर और हरा-भरा था। उस बाग से बड़ी ही मीठी सुगंध आ रही थी। उसे एहसास हो चला कि अब उसकी खाने की तलाश जल्द ही खत्म होने वाली है। वह तेजी से बाग की ओर अपने कदम बढ़ाने लगी। जैसे-जैसे वह कदम आगे बढ़ाती, बाग से आने वाली महक और तेज होती जाती। उसने मन में सोचा कि इस बाग में कुछ तो खास होगा, जो उसे खाने को मिलेगा। 

इसी सोच के साथ वह लोमड़ी और तेजी से आगे बढ़ने लगी। जैसे ही वह बाग में पहुंची, तो उसने देखा कि बाग तो अंगूर की बेलों से लदा हुआ है। सभी अंगूर पूरी तरह से पक चुके हैं। इतने रस भरे अंगूर देखकर उसकी आंखें चमक उठीं। अंगूरों की महक से इस बात का अंदाजा लगा लिया कि अंगूर कितने रसदार और मीठे होंगे। वह इतनी उतावली हो चली कि मानो एक ही बार में बाग के सारे अंगूर खा जाएगी। उसने झट से अंगूरों को लक्ष्य बनाकर एक लंबी छलांग मारी, लेकिन वह अंगूरों तक पहुंच न सकी और धड़ाम से जमीन पर आ गिरी। उसका पहला प्रयास विफल हुआ। 

उसने सोचा क्यों न फिर से कोशिश की जाए। वह एक बार फिर जोश से उठी और इस बार लोमड़ी पूरी ताकत से पहले से तेज अंगूरों की ओर छलांग लगा दी, लेकिन अफसोस कि उसका यह प्रयास भी बेकार गया। इस बार भी वह अंगूरों तक पहुंचने में नाकामयाब रही, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने खुद से कहा कि अगर दो प्रयास विफल हो गए तो क्या, इस बार तो सफलता मुझे मिलकर ही रहेगी। फिर क्या था, इस बार फिर वह लोमड़ी दोगुने जोश के साथ खड़ी हुई। इस बार उसने अब तक की सबसे लंबी छलांग लगाने की कोशिश की। उसने अपने शरीर की सारी ताकत को एकत्र कर एक लंबी दौड़ लगाई। उसे लगा था कि इस बार तो उसे अंगूर पाने से कोई नहीं रोक सकता, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस बार का प्रयास भी खाली चला गया। वह जमीन पर आ गिरी। इतने जतन के बावजूद वह एक भी अंगूर हासिल नहीं कर पाई। ऐसे में उसने अंगूर पाने की अपनी आस छोड़ दी और बेचारी लोमड़ी ने हार मान ली। अपनी विफलता को छिपाने के लिए उसने खुद ही बोला कि अंगूर खट्टे हैं, इसलिए इन्हें मुझे नहीं खाना।  

कहानी से सीख : 

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हम बिना सही प्रयास के किसी चीज को पाने में असमर्थ हैं, तो हमें उस चीज को लेकर गलत राय नहीं बनानी चाहिए। जैसा लोमड़ी ने अंगूर न मिलने पर अंगूरों को बिना चखे खट्टा कह दिया। साथ ही हमें किसी काम के लिए जल्दी हार नहीं माननी चाहिए।  

 

7. सोने का हंस की कहानी 

एक बार वाराणसी में एक कर्तव्यनिष्ठ व शीलवान् गृहस्थ रहता था। एक पंडित जी तीन बेटियों और एक पत्नी के साथ उसका एक छोटा सा घर था। किंतु उन पंडित जी की अल्प आयु में ही निधन हो गया। मरणोपरांत उनका पुनर्जन्म सोने के एक हंस के रूप में हुआ। पूर्व जन्म के उपादान और संस्कार उसमें इतने प्रबल थे कि वह इस जन्म में हंस का रूप लेने के बाद भी पूर्वजन्म की घटनाओ और भाषा से अवगत था  पूर्व जन्म के परिवार का मोह और उनके प्रति उसका लगाव उसके वर्तमान को भी प्रभावित कर रहा था। एक दिन वह अपने परिवार के मोह में आकार वाराणसी को उड़ चला, जहाँ उसकी पूर्व जन्म की पत्नी और तीन बेटियाँ रहती थीं। 

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घर की मुंडेर पर पहुँचकर जब उसने अपनी पत्नी और बेटियों को देखा तो उसका मन परेशान हो उठा, क्योंकि उसके मरणोपरांत उसके परिवार की आर्थिक दशा दयनीय हो चुकी थी। उसकी पत्नी और बेटियाँ अब सुंदर वस्त्रों की जगह चिथड़ों में दिख रही थीं। वैभव के सारे सामान भी वहाँ से खत्म हो चुके थे। फिर भी पूरे उल्लास पूर्वक उसने अपनी पत्नी और बेटियों का आलिंगन कर उन्हें अपना परिचय दिया और वापस लौटने से पूर्व उन्हें अपना सोने का एक पंख भी देता गया, जिसे बेचकर उसके परिवार वाले अपनी गरीबी को कम कर सकें। इस घटना के पश्चात हंस समय-समय पर उनसे मिलने वाराणसी जाता और हर बार उन्हें सोने का एक पंख देकर चला जाता। बेटियाँ तो हंस की दानशीलता से संतुष्ट थीं, मगर उसकी पत्नी बहुत ही लोभी प्रवृत्ति की थी। 

उसने सोचा, क्यों न वह उस हंस को मारकर एक ही पल में धनी बन जाए। बेटियों को भी उसने अपनी बात कही, मगर उसकी बेटियों ने उसका कड़ा विरोध किया। अगली बार जब वह हंस वहाँ आया तो संयोगवश उसकी बेटियाँ वहाँ नहीं थीं | उसकी पत्नी ने तब उसे बड़े प्यार से पुचकारते हुए अपने करीब बुलाया। उसकी पत्नी के छल-प्रपंच के खेल से अनभिज्ञ वह हंस खुशी-खुशी अपनी पत्नी के पास दौड़ता चला गया, मगर यह क्या उसकी पत्नी ने बड़ी बेरहमी से उसकी गरदन पकड़ के उसके सारे पंख एक ही झटके में नोच डाले और खून से लथपथ उसके शरीर को लकड़ी के एक पुराने संदूक में फेंक दिया। फिर जब वह उन सोने के पंखों को समेटना चाह रही थी तो उसके हाथों सिर्फ साधारण पंख ही लग सके, क्योंकि उस हंस के पंख उसकी इच्छा के प्रतिकूल नोचे जाने पर साधारण हंस के समान हो जाते थे। बेटियाँ जब लौटकर घर आई तो उन्होंने अपने पूर्व जन्म के पिता, इस समय के हंस को खून से सना देखा। उसके सोने के पंख भी लुप्त थे। सारी बात उनको समझ में आ गई। 

उन्होंने तत्काल ही हंस की भरपूर सेवा कर कुछ ही दिनों में उसे स्वस्थ कर दिया। स्वभावतः उसके पंख फिर से आने लगे, मगर अब वे सोने के नहीं थे। जब हंस के पंख इतने निकल आए थे कि वह उड़ने लायक हो गया था, तो वह उस घर से उड़ गया और फिर कभी वाराणसी में दिखाई नहीं पड़ा। 

कहानी से सीख :

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि दया और उदारता अनापेक्षित आशीर्वाद दिलाते हैं।

8. तीन छोटे सूअर की कहानी 

एक जंगल में तीन नन्हे सूअर अपनी मां के साथ रहते थे। कुछ समय बाद जब वो बड़े हुए तो, उनकी मां ने उन्हें अपने रास्ते जाने और अपनी किस्मत आजमाने के लिए कहा। अपनी मां की बात सुनकर तीनों सूअर अपने घर से निकले और शहर की तरफ जाने लगे। कुछ दूर चलने के बाद वो एक दूसरे जंगल में जा पहुंचे। तीनों सुअर काफी थके हुए थे, उन्होंने सोचा कि क्यों न इसी जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम कर लिया जाए। फिर तीनों वहीं आराम करने लगे। थोड़ी देर आराम करने के बाद तीनों भाई एक-दूसरे से अपनी आगे के जीवन की योजना बनाने लगे। पहले सूअर ने सलाह देते हुए कहा – “मुझे लगता है कि अब हम तीनों को अपने-अपने रास्ते जाते हुए अपनी किस्मत को आजमाना चाहिए।” दूसरे सूअर को यह बात अच्छी लग गई, लेकिन तीसरे सूअर को यह विचार अच्छा नहीं लगा। तीसरे सूअर ने कहा- “नहीं, मेरे ख्याल से हमें एक-दूसरे के साथ ही रहना चाहिए और एक ही जगह पर जाकर अपना नया जीवन शुरू करना चाहिए। हम एक-दूसरे के साथ रहते हुए भी अपनी-अपनी किस्मत को आजमाने का काम कर सकते हैं ।” उसकी बात सुनते ही पहले और दूसरे सूअर ने कहा – “ भला वो कैसे?” तो तीसरे सूअर ने उसका जवाब देते हुए कहा – “अगर हम तीनों एक ही स्थान पर ही आस-पास रहेंगे, तो कोई भी मुसीबत आने पर आसानी से एक-दूसरे की मदद कर सकेंगे।” यह बात बाकी दोनों सूअरों को बहुत अच्छी लगी । 

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उन दोनों में उसकी बात को स्वीकार कर लिया, अब तीनो सूअर आस-पास घर को बनाने में जुट गए। पहले सूअर ने एक भूसे का घर बनाया, क्योंकि यह जल्दी और आसानी से बनाया जा सकता था और उसे बनाने में मेहनत भी कम करनी पड़ती। उसने जल्दी-जल्दी कम समय में सबसे पहले अपना भूसे का घर बना लिया और आराम करने लगा। वहीं, दूसरे सूअर ने पेड़ की सूखी टहनियों से घर बनाने का फैसला किया। उसने सोचा मेरा टहनियों वाला घर भूसे के घर से काफी मजबूत होगा। इसके बाद उसने पेड़ की सूखी टहनियां जुटाईं और थोड़ी मेहनत करके अपने घर को बना लिया। फिर वो भी उसमें आराम करने लगा और खेलने लगा। दूसरी तरफ तीसरे सूअर ने काफी सोच विचार के साथ ईंट-पत्थरों से घर बनाने का निर्णय किया। उसने सोचा, घर बनाने में बहुत अधिक मेहनत तो लगेगी, लेकिन यह घर मजबूत और सुरक्षित भी होगा। ईंट का घर बनाने में तीसरे सूअर को सात दिनों का समय लग गया। तीसरे सूअर को एक घर बनाने के लिए इतना मेहनत करते देख बाकी दोनों सूअरों ने उसका खूब मजाक बनाया। उन्हें लगता कि वो एक घर को बनाने के लिए इतनी मेहनत अपनी बेवकूफी की वजह से कर रहा है। वे दोनों उसे अपने साथ खेलने के लिए भी उकसाते थे, लेकिन तीसरा सूअर कड़ी मेहनत से अपना घर बनाने में लगा रहा | 

जब ईंटों से उसका घर बनकर तैयार हो गया, तो वह देखने में बहुत सुंदर और मजबूत लग रहा था। इसके बाद तीनों सूअर बड़े ही मजे में अपने-अपने घरों में रहने लगे। उस नए स्थान पर उन तीनों को किसी तरह की परेशानी नहीं थी, इस वजह से तीनों अपने-अपने घर में बहुत खुश थे। एक दिन उनके घर पर एक जंगली भेड़िये की नजर पड़ी। तीन मोटे सूअरों को देखकर उस भेड़िये के मुंह में पानी आ गया। वह तुरंत उनकी घर की तरफ बढ़ा। सबसे पहले वह भेड़िया पहले सूअर के घर पर पहुंचा और दरवाजा खटखटाने लगा। पहला सूअर सो रहा था। दरवाजे को खटखटाते हुए सुनकर जब वह उठा, तो उसने घर के अंदर से ही पूछा- “कौन है बाहर दरवाजे पर?”। भेड़िया बोला – “मैं हूं, मुझे अंदर आने दो।” भेड़िये की कड़ी आवाज सुनकर ही सूअर समझ गया कि दरवाजे के बाहर कोई जंगली जानवर है। वह डर गया और दरवाजा खोलेने से मन कर दिया। इसके बाद भेड़िये को गुस्सा आ गया। उसने गुस्से में कहा – “नन्हा सूअर, मैं एक फूंक मारकर तेरे भूसे के घर को उड़ा दूंगा और तुझको खा जाऊंगा।” भेड़िये ने जैसे ही एक जोरदार फूंक मारी वैसे ही भूसे का घर उड़ गया। 

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बेचारा पहला सूअर, वहां से किसी तरह अपनी जान बचाकर भागा  और दूसरे सूअर के घर जा पहुंचा। जैसे ही दूसरे सूअर ने दरवाजा खोला, वह जल्दी से अंदर घुस गया और दरवाजा बंद कर दिया। पहले सूअर को इतना डरा हुआ देखकर दूसरा सूअर हैरान हो गया। इतने में भेड़िया उसके घर पर भी पहुंच गया और दरवाजा खटखटाने लगा। भेड़िया फिर से बोला – “दरवाजा खोलो और मुझे अंदर आने दो।” आवाज सुनकर पहला सूअर पहचान गया कि दरवाजे पर वही जंगली खूंखार भेड़िया ही है। उसने कहा – “भाई, तुम दरवाजा  खोलना मत। अरे यह भेड़िया हम सब खा जाएगा।” जब दूसरे सुअर ने दरवाजा नहीं खोला, तो भेड़िया फिर से गुस्से से लाल-पीला हो गया। वह जोर से चिल्लाया – “नन्हेसूअरों, तुंम सबको क्या लग रहा है, अगर तुम दरवाजा नहीं खोलेगे, तो तुम दोनों क्या जिंदा बच पाओगे? इस टहनियों से बने घर को मैं एक झटके में तोड़ सकता हूं।” इतना कहते ही भेड़िये ने एक ही झटके में टहनियों से बना दूसरे सूअर का घर तोड़ दिया। अब दोनों सूअर वहां से तेजी से भागे और तीसरे सूअर के घर पहुंच कर उसको सारी बात बता दी। यह सब सुनकर तीसरे सूअर ने कहा – “तुम दोनों डरो मत। वह जंगली भेड़िया मेरा घर नहीं तोड़ सकता है।मेरा बहुत मजबूत घर है।” लेकिन, वे दोनों सूअर भेड़िये से बहुत डरे हुए थे, इसलिए घर के कोने में जाकर छिप गए। इतने में वहां पर वही भेड़िया आ गया। वह तीसरे सूअर के घर का दरवाजा खटखटाने लगा। उसने कहा – “दरवाजा जल्दी से खोलो और घर के अंदर आने दो।” तभी तीसरे सूअर ने बिना डरे कहा – “नहीं, हम दरवाजा नहीं खोलेंगे।” यह सुनकर भेड़िया चिल्लाया – “मैं फिर भी तुम तीनों को मारकर खा जाऊंगा। 

मैं इस घर को भी तोड़ सकता हूं।” भेड़िये ने तीसरे सूअर के ईंट से बने घर को तोड़ने की कोशिश करने लगा। सबसे पहले उसने फूंक मारी, लेकिन वह ईंट का बना घर नहीं उड़ा। इसके बाद उसने अपने पंजे से से घर को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन इसमें भी वह असफल रहा। उस जंगली भेड़िये के बहुत प्रयास करने के बाद भी तीसरे सूअर का ईंट से बना घर नहीं टूटा, लेकिन फिर भी भेड़िये ने हार नहीं मानी। उसने तय किया कि वह घर के अंदर चिमनी के रास्ते में घुसेगा। पहले वह घर की छत पर चढ़ा फिर चिमनी के रास्ते घर के अंदर घुसने लगा। चिमनी के अंदर से आ रही आवाजों को सुनकर पहला और दूसरा सूअर और ज्यादा डर गए और रोने लगे। तभी तीसरे सूअर को एक तरकीब सूझी। उसने चिमनी के नीचे आग जलाई और एक बर्तन में पानी भरकर वहां पर उबलने के लिए रख दिया। भेड़िये ने जैसे ही चिमनी के अंदर से नीचे की तरफ छलांग लगाई, वह सीधे उस उबलते पानी में गिरा गया और उसकी मौत हो गई। 

इस तरह तीसरे सूअर की बुद्धिमानी और निडरता से तीनों सूअरों की जान बच गई। फिर पहले और दूसरे सूअर को अपनी-अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने कहा, “भाई हमें माफ कर दो। हमें तुम्हारा मजाक नहीं बनाना चाहिए था। तुम बिल्कुल सही थे। आज तुम्हारे कारण ही हम जिंदा हैं।” तीसरे सूअर ने अपने दोनों भाइयों दोनों को माफ कर दिया और अपने दोनों भाइयों को अपने ही घर में रहने के लिए भी कहा। इसके बाद तीनों सूअर खुसी-खुसी एक साथ ईंट से बने मजबूत घर में रहने लगे।

कहानी से सीख : 

तीन छोटे सूअर की कहानी, हमें यह सीख देती है कि कभी भी दूसरों की कड़ी मेहनत का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। साथ ही खुद भी कड़ी मेहनत करनी चाहिए और सूझबूझ कर ही कोई फैसला करना चाहिए। इस कहानी ने हमें मेहनत और योजना बनाने के महत्व को दिखाया है।  

9.लालची बिल्ली और बंदर  

एक बार की बात है। चिंकी और मिंकी नाम की दो बिल्लियाँ थी | मिंकी को किसी काम से बाजार जाना पड़ा, लेकिन किसी कारण से चिंकी उसके साथ नहीं जा सकी। चिंकी का अकेले मन नहीं लग रहा था, तो उसने सोचा कि क्यों न वो भी बाजार घूम कर आए। रास्ते में चलते हुए उसे एक रोटी का टुकड़ा मिला। उसके मन में अकेले रोटी खाने का लालच आ गया और वो उसे लेकर घर आ गई। जैसे ही वह रोटी के टुकड़े को खाने वाली थी, तभी अचानक मिंकी आ गई। मिंकी ने उसके हाथ में रोटी देखी, तो उससे पूछने लगी कि चिंकी हम तो सब कुछ बांटकर खाते हैं और तुम तो मेरे साथ ही खाना खाती थी। क्या आज तुम मुझे रोटी नहीं दोगी? चिंकी ने मिंकी काे देखा तो डर गई और मन ही मन मिंकी को कोसने लगी। इस पर चिंकी ने हड़बड़ाहट में कहा कि अरे नहीं बहन मैं तो रोटी को आधा-आधा कर रही थी, ताकि हम दोनों को बराबर रोटी मिल सके। मिंकी सब समझ गई थी और उसके मन में भी लालच आ गया था, लेकिन कुछ बोली नहीं। जैसे ही रोटी के टुकड़े हुए, मिंकी चीख पड़ी कि मेरे हिस्से में कम राटी आई है। रोटी चिंकी को मिली थी इसलिए, वो उसे कम देना चाहती थी। फिर भी वो बोली कि रोटी तो बराबर ही दी है। 

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इस बात को लेकर दोनों में झगड़ा हो गया और धीरे-धीरे यह बात पूरे जंगल में फैल गई। सभी जानवर उन दोनों को लड़ते हुए देख रहे थे। उसी समय वहां एक बंदर आया और उसने कहा कि मैं दोनों के बीच में बराबर रोटी बांट दूंगा। सभी जानवर बंदर की हां में हां मिलाने लगे। न चाहते हुए भी दोनों ने बंदर को रोटी दे दी। बंदर कहीं से तराजू लेकर आया और दोनों ओर रोटी के टुकड़े रख दिए। जिस तरफ वजन ज्यादा होता, वो उस तरफ की थोड़ी-सी रोटी यह बोलकर खा लेता कि इस रोटी को दूसरी तरफ रखी रोटी के वजन के बराबर कर रहा हूं। वो जानबूझकर ज्यादा रोटी का टुकड़ा खा लेता, जिससे दूसरी तरफ की रोटी वजन में ज्यादा हो जाती। ऐसा करने से दोनों ओर रोटी के बहुत छोटे-छोटे टुकड़े बचे। बिल्लियों ने जब इतनी कम रोटी देखी तो बोलने लगीं कि हमारी रोटी के टुकड़े वापस दे दो। हम बची हुई रोटी को आपस में बांट लेंगे। तब बंदर बोला कि अरे वाह, तुम दोनों बहुत चालाक हो। मुझे मेरी मेहनत का फल नहीं दोगी क्या। ऐसा बाेलकर बंदर दोनों पलड़ों में बची रोटी के टुकड़ों को खाकर चला गया और दोनों बिल्लियां एक दूसरे का मुंह तांकती रही |

कहानी से सीख : 

लालची बिल्ली और बंदर की कहानी, हमें यह सीख देती है किहमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। जो कुछ भी हमारे पास है, हमें उससे ही संतोष करना चाहिए और आपस में मिलजुल कर रहना चाहिए। लालच करने से जो हमारे पास है, उससे भी हाथ धोना पड़ सकता है। 


10. कबूतर और बहेलिया  

एक समय की बात है, एक जंगल में बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर बहुत सारे कबूतर रहते थे। वो जंगल में घूम-घूमकर भोजन की तलाश करते और अपना पेट भरते थे। उन सभी कबूतरों में एक बूढ़ा कबूतर भी था। इसलिए, सभी कबूतर उसकी बात माना करते थे | एक दिन उस जंगल में कहीं से घूमता हुआ एक बहेलिया आया। उसकी नजर पेड़ पर बैठे उन कबूतरों पर पड़ी। कबूतरों को देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई और उसने अपने मन में कुछ सोचा, और वहां से चला गया, लेकिन बूढ़े कबूतर ने उस बहेलिए को देख लिया था।  बूढ़ा कबूतर बहुत ही समझदार था। दूसरे दिन भरी दोपहर में सारे कबूतर पेड़ पर आराम कर रहे थे। वह बहेलिया फिर आया और उसने देखा कि गर्मी की वजह से सभी कबूतर पेड़ पर आराम कर रहे हैं। उसने बरगद के नीचे जाल बिछा कर उस पर कुछ दाने बिखेर दिए और दूसरे पेड़ के पीछे छुप गया।

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कबूतरों में से एक कबूतर की नजर उन दानों पर पड़ी। दानों को देखते ही उसने सभी कबूतरों से कहा कि- वो देखो भाइयों‌‌‌! आज किस्मत ही खुल गई। हमें आज भोजन की तलाश में कहीं जाना नहीं पड़ा, उल्टा भोजन ही हमारे पास आ गया। चलो चलकर मजे से भोजन करते हैं। गर्मी से बेहाल और भूख से परेशान कबूतर जैसे ही नीचे की और उतरने लगे, बूढ़े कबूतर ने उन्हें रोका, लेकिन किसी ने भी उसकी बात नहीं मानी और नीचे जाकर दाना चुगने लगे। बूढ़े कबूतर की नजर अचानक पेड़ के पीछे छिपे बहेलिया पर गई और उसे माजरा समझते देर नहीं लगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दाना चुग कर कबूतर उड़ने की कोशिश करने लगे, लेकिन सभी जाल में फंस चुके थे। कबूतर उड़ने की जितनी कोशिश करते उतने ही जाल में उलझ जाते। 

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कबूतरों को जाल में फंसा देखकर, पास में छुपा बहेलिया पेड़ के पीछे से निकल आया और उनको पकड़ने के लिए उनकी ओर बढ़ा। यह देखकर सभी कबूतर डर गए और बूढ़े कबूतर से मदद की गुहार लगाने लगे। तब बूढ़ा कबूतर कुछ सोचने लगा और बोला कि जब मैं कहूं तब सभी एक साथ उड़ने की कोशिक करेंगे और उड़कर सभी मेरे पीछे चलेंगे। कबूतर कहने लगे कि हम जाल में फंसे हैं, कैसे उड़ पाएंगे। इस पर बूढ़े कबूतर ने कहा कि सभी एक साथ कोशिश करेंगे, तो उड़ पाएंगे। सभी ने उस बूढ़े कबूतर की बात को माना और उसके कहने पर सभी एक साथ उड़ने की कोशिश करने लगे। 

उनके इस प्रयास से वो जाल सहित उड़ गए और बूढ़े कबूतर के पीछे-पीछे उड़ने लगे। कबूतरों को जाल सहित उड़ता देख बहेलिया पूरी तरह से हैरान रह गया, क्योंकि उसने पहली बार कबूतरों को जाल लेकर उड़ते देखा था। वह कबूतरों के पीछे पीछे भागा, लेकिन कबूतर नदी और पर्वतों को पार करते हुए निकल गए। इससे बहेलिया उनका पीछा नहीं कर पाया। इधर बूढ़ा कबूतर जाल में फंसे कबूतरों को एक पहाड़ी पर ले गया, जहां उसका एक चूहा मित्र रहता था। बूढ़े कबूतर को आता देख उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, लेकिन जब बूढ़े कबूतर ने सारा किस्सा सुनाया, तो उसे दुख भी हुआ। उसने कहा कि मित्र चिंता मत करो, मैं अभी अपने दांतों से जाल को काट देता हूं। उसने अपने दांतों से जाल को काट कर सभी कबूतरों को जाल से आजाद कर दिया। कबूतरों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सभी ने चूहे को धन्यवाद दिया और बूढ़े कबूतर से क्षमा भी मांगी।

कहानी से सीख : 

कबूतर और बहेलिया की कहानी से यह सीख मिलती है कि एकता में ही ताकत होती है और हमें हमेशा बड़ों की बात माननी चाहिए।

आशा करता हूँ आपको Top 10 Moral Stories In Hindi पसंद आई होंगी एसी ही मनोरंजक और ज्ञान के भरपूर कहानियों के लिए हमारे साथ जुड़े  रहे धन्यवाद ..

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